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Article 96 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 12:21:27
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 96

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 96
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का अयोग्यता के प्रश्नों पर निर्णय लेने में प्रभावित न होना अनुच्छेद 96 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह लोकसभा के अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) को दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule, दलबदल विरोधी कानून) के तहत अयोग्यता के प्रश्नों पर निर्णय लेते समय उनकी शक्तियों, विशेषाधिकारों, और मत देने के अधिकार को प्रभावित न होने की गारंटी देता है। यह अनुच्छेद दलबदल से संबंधित मामलों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 96 का पूर्ण विवरण
जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष दसवीं अनुसूची के तहत किसी सदस्य की अयोग्यता से संबंधित प्रश्न पर निर्णय ले रहा हो, तो वह सदन में अपने मत देने के अधिकार से वंचित नहीं होगा। अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की अन्य शक्तियां, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियां भी इस दौरान प्रभावित नहीं होंगी।
अनुच्छेद 96 की मुख्य विशेषताएं दलबदल विरोधी कानून के तहत निष्पक्षता: अनुच्छेद 96 यह सुनिश्चित करता है कि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें, बिना उनकी शक्तियों या विशेषाधिकारों पर कोई प्रतिबंध लगाए।
मत देने का अधिकार: सामान्यतः अध्यक्ष या उपाध्यक्ष मतदान में भाग नहीं लेते, सिवाय इसके कि जब मत बराबर हों (Casting Vote)। अनुच्छेद 96 स्पष्ट करता है कि अयोग्यता के मामलों में भी उनका मत देने का अधिकार बना रहता है, यदि वे सदन के सदस्य हैं।
शक्तियों और विशेषाधिकारों की सुरक्षा: यह प्रावधान अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की संवैधानिक शक्तियों और विशेषाधिकारों को दलबदल मामलों में सुरक्षित रखता है, जिससे उनकी स्वायत्तता बनी रहती है।
दसवीं अनुसूची के साथ संबंध: अनुच्छेद 96 दसवीं अनुसूची (1985 में 52वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया) के साथ मिलकर काम करता है, जो दलबदल के आधार पर सांसदों और विधायकों की अयोग्यता को नियंत्रित करता है।
संवैधानिक जवाबदेही: यह प्रावधान अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को निष्पक्ष और संवैधानिक रूप से जवाबदेह बनाता है, ताकि दलबदल के मामलों में राजनीतिक दबाव से बचा जा सके।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष की अयोग्यता पर निर्णय लेने की शक्ति की संवैधानिकता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 96 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामलों में निर्णय लेने की शक्ति है, और उनकी शक्तियां और विशेषाधिकार प्रभावित नहीं होते। हालांकि, उनके निर्णय सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं, यदि वे मनमाने, पक्षपातपूर्ण, या असंवैधानिक हों।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 96 की संवैधानिक वैधता को मजबूत किया और अध्यक्ष/उपाध्यक्ष की निष्पक्षता पर जोर दिया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष द्वारा दलबदल के मामलों में निर्णय लेने की शक्ति पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 96 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपाध्यक्ष (या समकक्ष) द्वारा अयोग्यता पर निर्णय लेते समय निष्पक्षता और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। अनुच्छेद 96 के तहत उनकी शक्तियां संरक्षित हैं, लेकिन वे मनमानी नहीं हो सकतीं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 96 के तहत उपाध्यक्ष की शक्तियों की निष्पक्षता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के विघटन और अध्यक्ष/उपाध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया, जिसमें दलबदल के मुद्दे भी शामिल थे।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष द्वारा दसवीं अनुसूची के तहत लिए गए निर्णय (अनुच्छेद 96) संवैधानिक ढांचे के भीतर होने चाहिए और निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 96 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भूमिका की संवैधानिकता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और अध्यक्ष की शक्तियों पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 96 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की शक्तियां संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा हैं, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 96 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
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