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Article 213 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:18:31
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 213

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 213
अनुच्छेद 213 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय IV(राज्य की कार्यपालिका) में आता है। यह राज्यपाल की अध्यादेश प्रख्यापित करने की शक्ति(Power of Governor to promulgate Ordinances during recess of Legislature) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को विधानमंडल के सत्रावसान(recess) के दौरान अध्यादेश जारी करने का अधिकार देता है।
"(1) यदि किसी समय, सिवाय इसके कि जब विधानमंडल का दोनों सदन या, जैसी भी स्थिति हो, एकमात्र सदन सत्र में हो, राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, जो तत्काल कार्रवाई को अपरिहार्य बनाती हैं, तो वह ऐसे अध्यादेश को प्रख्यापित कर सकता है, जैसा कि उसे परिस्थितियों में ठीक प्रतीत हो, और वह:
(क) ऐसी कार्रवाई कर सकता है, या ऐसे उपबंध कर सकता है, जो इस संविधान के अधीन विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून में किए जा सकते हैं;
(ख) ऐसी कोई बात करने के लिए विधि द्वारा उपबंध कर सकता है, जो इस संविधान के अधीन विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून में की जा सकती है।
परंतु कोई भी ऐसा अध्यादेश
(क) इस संविधान के अधीन विधानमंडल की शक्ति के अधीन होगा और उसके द्वारा निरसन योग्य होगा;
(ख) उस तारीख से छह सप्ताह की समाप्ति पर प्रभावहीन हो जाएगा, जिस तारीख को विधानमंडल का दोनों सदन या, जैसी भी स्थिति हो, एकमात्र सदन पुनः सत्र में आएगा, सिवाय इसके कि यदि और उससे पहले दोनों सदनों द्वारा या, जैसी भी स्थिति हो, एकमात्र सदन द्वारा उसे अस्वीकृत करने का संकल्प पारित कर दिया जाए, तो वह उस तारीख से प्रभावहीन हो जाएगा:
परंतु यह कि यदि विधानमंडल के दोनों सदन या एकमात्र सदन, जैसी भी स्थिति हो, छह सप्ताह से पहले भंग हो जाता है, तो अध्यादेश उस तारीख से छह सप्ताह की समाप्ति पर प्रभावहीन हो जाएगा, जिस तारीख को वह पुनः सत्र में आता, यदि वह भंग न हुआ होता।
(2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा, जो उस राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी अधिनियम का होता है, परंतु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश:
(क) विधानमंडल के समक्ष रखा जाएगा, और
(ख) उस तारीख से छह सप्ताह की समाप्ति पर प्रभावहीन हो जाएगा, जिस तारीख को वह विधानमंडल पुनः सत्र में आएगा, या यदि उससे पहले दोनों सदनों द्वारा या, जैसी भी स्थिति हो, एकमात्र सदन द्वारा उसे अस्वीकृत करने का संकल्प पारित कर दिया जाए, तो वह उस तारीख से प्रभावहीन हो जाएगा।
(3) इस संविधान में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई अध्यादेश, जो किसी उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को कम करता हो या समाप्त करता हो, प्रख्यापित नहीं किया जाएगा।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 213 राज्यपाल को विधानमंडल के सत्रावसान के दौरान तत्काल कार्रवाई के लिए अध्यादेश जारी करने का अधिकार देता है। यह आपातकालीन परिस्थितियों में शासन की निरंतरता सुनिश्चित करता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में कार्यकारी लचीलापन और विधायी नियंत्रण को संतुलित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो गवर्नर को अध्यादेश जारी करने का अधिकार देता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में कार्यकारी अध्यादेशों की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, आपातकालीन परिस्थितियों में शासन की निरंतरता के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 123(राष्ट्रपति के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान कार्यकारी को त्वरित कार्रवाई की शक्ति देता है, लेकिन विधानमंडल की मंजूरी के अधीन।
अनुच्छेद 213 के प्रमुख तत्व
खंड(1): अध्यादेश की शक्ति: शर्तें: विधानमंडल का सत्रावसान(दोनों सदन या एकमात्र सदन सत्र में न हो)। तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता। राज्यपाल अध्यादेश प्रख्यापित कर सकता है, जो: विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के समान उपबंध कर सकता है। विधानमंडल की शक्ति के अधीन होगा। उदाहरण: 2025 में, एक राज्यपाल ने आपदा प्रबंधन के लिए अध्यादेश जारी किया।
अध्यादेश की अवधि: अध्यादेश छह सप्ताह के बाद प्रभावहीन हो जाएगा, जब विधानमंडल पुनः सत्र में आएगा। यदि विधानमंडल द्वारा अस्वीकृत किया जाता है, तो तुरंत प्रभावहीन। यदि विधानमंडल भंग हो जाता है, तो अध्यादेश सत्र शुरू होने की तारीख से छह सप्ताह तक वैध। उदाहरण: एक अध्यादेश विधानसभा के सत्र शुरू होने के छह सप्ताह बाद समाप्त।
खंड(2): अध्यादेश का प्रभाव: अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा, जो विधानमंडल के अधिनियम का होता है। इसे विधानमंडल के समक्ष रखना अनिवार्य है। उदाहरण: 2025 में, अध्यादेश को विधानसभा में प्रस्तुत और चर्चा के बाद कानून में बदला गया।
खंड(3): उच्च न्यायालय पर प्रतिबंध: कोई अध्यादेश उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को कम करने या समाप्त करने के लिए जारी नहीं किया जा सकता। उदाहरण: उच्च न्यायालय की शक्ति को सीमित करने वाला अध्यादेश अवैध माना गया।
महत्व: कार्यकारी लचीलापन: आपातकाल में त्वरित कार्रवाई। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानमंडल की मंजूरी अनिवार्य। संघीय ढांचा: कार्यकारी और विधायी संतुलन। न्यायपालिका की रक्षा: उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार पर सुरक्षा।
प्रमुख विशेषताएँ: अध्यादेश: तत्काल कार्रवाई। अवधि: छह सप्ताह या अस्वीकृति। न्यायालय: क्षेत्राधिकार पर प्रतिबंध। विधानमंडल: अंतिम मंजूरी।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों ने आपदा, कर, या प्रशासनिक सुधारों के लिए अध्यादेश जारी किए। 2010 के दशक: अध्यादेश के दुरुपयोग पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में अध्यादेशों का डिजिटल रिकॉर्ड और पारदर्शिता। चुनौतियाँ और विवाद: दुरुपयोग: अध्यादेशों का बार-बार उपयोग।न्यायिक समीक्षा: अध्यादेश की वैधता पर कोर्ट की जाँच। विधायी प्रभुता: विधानमंडल को दरकिनार करने के आरोप।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 123: राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति। अनुच्छेद 200: विधेयकों पर राज्यपाल की सहमति। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार।
Conclusion
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