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Article 245 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 15:47:54
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 245

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 245
अनुच्छेद 245 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध) में आता है। यह संसद और राज्य विधानमंडलों की विधायी शक्तियों की सीमा(Extent of laws made by Parliament and by the Legislatures of States) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा करता है और संघीय ढांचे की आधारशिला है।
"(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन, संसद भारत के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधियाँ बना सकती है, और किसी राज्य का विधानमंडल उस राज्य के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधियाँ बना सकता है।
(2) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि केवल इस आधार पर अवैध नहीं होगी कि वह भारत के बाहर प्रभावी होगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 245 संसद और राज्य विधानमंडलों की विधायी शक्तियों की क्षेत्रीय सीमा को परिभाषित करता है। यह संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा सुनिश्चित करता है, जो सातवीं अनुसूची(संघ, राज्य, और समवर्ती सूची) के साथ मिलकर कार्य करता है। इसका लक्ष्य संवैधानिक व्यवस्था, संघीय संतुलन, और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 245 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें केंद्र और प्रांतों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा था। भारतीय संदर्भ: भारत के संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा आवश्यक था ताकि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हितों में संतुलन बना रहे। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच विधायी स्वायत्तता और समन्वय को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 245 के प्रमुख तत्व
खंड(1): विधायी शक्तियों की क्षेत्रीय सीमा: संसद भारत के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधियाँ बना सकती है। राज्य विधानमंडल अपने राज्य के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधियाँ बना सकता है। यह सातवीं अनुसूची के तहत विषयों(संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची) के साथ मिलकर कार्य करता है। उदाहरण: 2025 में, संसद ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर विधि बनाई(संघ सूची), जबकि महाराष्ट्र ने कृषि पर विधि बनाई(राज्य सूची)।
खंड(2): अतिरिक्त-क्षेत्रीय प्रभाव: संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि केवल इस आधार पर अवैध नहीं होगी कि वह भारत के बाहर प्रभावी होगी। यह संसद को अतिरिक्त-क्षेत्रीय विधियाँ(जैसे, विदेश में भारतीय नागरिकों पर लागू कानून) बनाने का अधिकार देता है। उदाहरण: 2025 में, संसद ने विदेश में भारतीयों के लिए कर संबंधी विधि बनाई।
महत्व: संघीय संतुलन: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा। राष्ट्रीय एकता: संसद की व्यापक विधायी शक्ति। क्षेत्रीय स्वायत्तता: राज्यों की विधायी स्वतंत्रता। अतिरिक्त-क्षेत्रीय शक्ति: भारत के बाहर प्रभावी कानून।
प्रमुख विशेषताएँ: संसद: पूरे भारत या उसके भाग के लिए विधियाँ। राज्य विधानमंडल: राज्य के लिए विधियाँ। अतिरिक्त-क्षेत्रीय विधियाँ: संसद की शक्ति। सातवीं अनुसूची: विषयों का बंटवारा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: संसद ने राष्ट्रीय महत्व के विषयों(जैसे, रक्षा, विदेश नीति) पर विधियाँ बनाईं। 2010 के दशक: राज्यों ने शिक्षा और कृषि पर विधियाँ बनाईं। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डेटा संरक्षण पर संसद की विधि और राज्यों की स्थानीय डिजिटल नीतियाँ।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: समवर्ती सूची के विषयों(जैसे, शिक्षा) पर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद। अतिरिक्त-क्षेत्रीय विधियाँ: विदेश में लागू कानूनों की वैधता पर सवाल। न्यायिक समीक्षा: विधायी शक्तियों की सीमा पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का बंटवारा। सातवीं अनुसूची: संघ, राज्य, समवर्ती सूची। अनुच्छेद 248: संसद की अवशिष्ट शक्तियाँ।
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