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Article 297 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 15:08:09
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 297

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 297
अनुच्छेद 297 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय II(संपत्ति, संविदाएँ, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएँ और वाद) में आता है। यह भारत के क्षेत्रीय जल, महाद्वीपीय मग्न तट, और विशेष आर्थिक क्षेत्र में संपत्तियों(Things of value within territorial waters or continental shelf and resources of the exclusive economic zone to vest in the Union) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र सरकार को भारत के समुद्री क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों और संपत्तियों पर स्वामित्व और नियंत्रण प्रदान करता है।
"(1) भारत के क्षेत्रीय जल, महाद्वीपीय मग्न तट, और विशेष आर्थिक क्षेत्र में सभी संपत्तियाँ और प्राकृतिक संसाधन भारत सरकार में निहित होंगे।
(2) संसद कानून द्वारा इन संसाधनों के उपयोग, शोषण, और निपटान को नियंत्रित कर सकती है।
(3) केंद्र सरकार इन क्षेत्रों में खनिज और अन्य संसाधनों के अन्वेषण और शोषण के लिए लाइसेंस या अनुबंध दे सकती है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 297 का उद्देश्य भारत के क्षेत्रीय जल(territorial waters), महाद्वीपीय मग्न तट(continental shelf), और विशेष आर्थिक क्षेत्र(exclusive economic zone) में सभी संपत्तियों और प्राकृतिक संसाधनों(जैसे, खनिज, तेल, मछलियाँ) पर केंद्र सरकार का स्वामित्व सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान केंद्र को इन संसाधनों के उपयोग, शोषण, और निपटान की शक्ति देता है। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय हित, आर्थिक विकास, और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 297 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। 40वां संशोधन(1976) ने इसे संशोधित कर विशेष आर्थिक क्षेत्र(200 समुद्री मील तक) को शामिल किया, जो संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि(UNCLOS) के अनुरूप था। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को अपने समुद्री संसाधनों(जैसे, तेल, गैस, मत्स्य) पर नियंत्रण स्थापित करने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 297 ने केंद्र को यह अधिकार दिया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान समुद्री संसाधनों(जैसे, अपतटीय तेल, नवीकरणीय ऊर्जा) और पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 297 के प्रमुख तत्व
खंड(1): स्वामित्व: भारत के क्षेत्रीय जल(12 समुद्री मील तक), महाद्वीपीय मग्न तट(200 समुद्री मील तक), और विशेष आर्थिक क्षेत्र(200 समुद्री मील तक) में सभी संपत्तियाँ और प्राकृतिक संसाधन भारत सरकार में निहित हैं। इसमें खनिज(जैसे, तेल, गैस), मत्स्य, और अन्य संसाधन शामिल हैं। उदाहरण: 2025 में, अरब सागर में तेल क्षेत्र केंद्र सरकार के स्वामित्व में।
खंड(2): संसद की शक्ति: संसद कानून बनाकर इन संसाधनों के उपयोग, शोषण, और निपटान को नियंत्रित कर सकती है। यह केंद्र को संसाधनों के प्रबंधन में लचीलापन देता है। उदाहरण: समुद्री क्षेत्र अधिनियम, 1976।
खंड(3): लाइसेंस और अनुबंध: केंद्र सरकार इन क्षेत्रों में संसाधनों के अन्वेषण और शोषण के लिए लाइसेंस या अनुबंध दे सकती है। यह निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ सहयोग को बढ़ावा देता है। उदाहरण: 2025 में, ONGC को अपतटीय तेल खनन के लिए लाइसेंस।
महत्व: राष्ट्रीय हित: समुद्री संसाधनों पर केंद्र का नियंत्रण। आर्थिक विकास: तेल, गैस, और मत्स्य जैसे संसाधनों का शोषण। पर्यावरण संरक्षण: संसाधनों का टिकाऊ उपयोग। न्यायिक समीक्षा: संसाधन प्रबंधन की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: स्वामित्व: समुद्री संसाधनों पर केंद्र। संसद की शक्ति: उपयोग और निपटान। लाइसेंस: अन्वेषण और शोषण। संघीय ढांचा: केंद्र का प्रभुत्व।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1976: 40वां संशोधन और विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना। 2000 के दशक: अपतटीय तेल खनन के लिए लाइसेंस। 2025 स्थिति: नवीकरणीय समुद्री ऊर्जा(जैसे, पवन ऊर्जा) के लिए परियोजनाएँ।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: तटीय राज्यों(जैसे, तमिलनाडु, गुजरात) द्वारा संसाधनों पर दावे। पर्यावरणीय चिंताएँ: समुद्री शोषण से पर्यावरण को नुकसान। न्यायिक समीक्षा: लाइसेंस और शोषण की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 294: सामान्य उत्तराधिकार। अनुच्छेद 295: रियासतों से उत्तराधिकार। अनुच्छेद 296: बिना वारिस की संपत्ति। अनुच्छेद 298: व्यापार की शक्ति।
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