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Working system of the Indian Parliament भारतीय संसद की कार्य प्रणाली
jp Singh 2025-05-07 00:00:00
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Working system of the Indian Parliament भारतीय संसद की कार्य प्रणाली

भारतीय संसद लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रमुख अंग है और भारतीय संविधान के तहत यह देश की सर्वोच्च विधायिका है। यह दो सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – से मिलकर बनी है। संसद का प्रमुख कार्य विधायिका का संचालन करना है, जिसमें कानून बनाना, नीतियां तय करना, बजट को पारित करना, और सरकार के कार्यों की निगरानी करना शामिल है। इसके अलावा, भारतीय संसद का कार्य विभिन्न पहलुओं में फैलता है, जैसे कि नीतिगत फैसले, राष्ट्रीय सुरक्षा, और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर बहस करना।
संसद का संगठन
भारतीय संसद का संगठन दो प्रमुख सदनों से मिलकर होता है
लोकसभा (Lower House)
यह सदन सीधे जनता द्वारा चुना जाता है और इसके सदस्य पाँच वर्षों के लिए होते हैं। लोकसभा का कार्य विधायिका, राष्ट्रीय नीति निर्धारण और सरकार की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखना है
राज्यसभा (Upper House)
यह सदन अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है और इसके सदस्य राज्य विधानसभाओं और अन्य निर्वाचित निकायों द्वारा चुने जाते हैं। यह स्थायी सदन है, जिसमें सदस्य के कार्यकाल की कोई समाप्ति नहीं होती है, लेकिन हर सदस्य के कार्यकाल की अवधि छह वर्ष होती है।
संसद का प्रमुख कार्य
भारतीय संसद का प्रमुख कार्य है – कानून बनाना और सरकार के कार्यों पर निगरानी रखना। इसके अलावा संसद अन्य कई कार्य करती है, जैसे:
विधेयक पारित करना
भारतीय संसद द्वारा पारित किए गए विधेयक कानून बनते हैं। विधेयकों को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पारित किया जाता है, और फिर राष्ट्रपति से स्वीकृति प्राप्त करने के बाद वे कानून बन जाते हैं।
संसदीय प्रश्न और बहस
संसद में सवाल पूछने का अधिकार सदस्यों को है, जिससे वे सरकार से उत्तर प्राप्त करते हैं। इसके द्वारा सरकार के कार्यों पर निगरानी रखने में मदद मिलती है।
बजट और वित्तीय निर्णय
संसद का एक अहम कार्य सरकार के द्वारा प्रस्तुत किए गए बजट को पारित करना है। यह न केवल आर्थिक विकास की दिशा तय करता है, बल्कि देश की वित्तीय स्थिति को भी नियंत्रित करता है।
संसदीय समितियाँ
संसद में विभिन्न समितियाँ बनाई जाती हैं, जो सरकार के कार्यों की समीक्षा करती हैं। ये समितियाँ विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करती हैं और संसद में प्रस्तुत करती हैं।
संसद के सत्र
भारतीय संसद के सत्रों का आयोजन साल में तीन बार होता है:
वर्षा सत्र (Monsoon Session)
शीतकालीन सत्र (Winter Session)
वसंत सत्र (Budget Session)
हर सत्र में संसद की बैठकें होती हैं, और सदस्यों द्वारा विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जाती है। इन सत्रों में विधेयकों को पेश किया जाता है, बजट पर चर्चा की जाती है, और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस होती है।
संसद में कार्यवाही का तरीका
संसद की कार्यवाही बहुत ही व्यवस्थित और प्रक्रियाबद्ध होती है। इसे नियंत्रित करने के लिए एक सभापति (स्पीकर) और उपसभापति (डिप्टी स्पीकर) होते हैं, जो कार्यवाही को सही दिशा में चलाने का कार्य करते हैं।
क्वोरम
संसद में किसी भी प्रकार की कार्यवाही के लिए एक न्यूनतम सदस्य संख्या की आवश्यकता होती है, जिसे क्वोरम कहा जाता है।
संसदीय प्रश्नकाल
यह समय उस समय को दर्शाता है जब सदस्य सरकार से सवाल पूछ सकते हैं। प्रश्नकाल को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है – सामान्य प्रश्न, विशेष प्रश्न, और अतिआवश्यक प्रश्न।
बहस और विचार-विमर्श
संसद में विधेयकों, नीतियों और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए सदस्य विचार-विमर्श करते हैं। इन बहसों का उद्देश्य सरकार के कार्यों की समीक्षा करना और आवश्यक सुधार सुझाना होता है।
संसद की प्रमुख समितियाँ
संसद की कई प्रमुख समितियाँ हैं, जो सरकार के कार्यों की निगरानी करती हैं
लोकसभा समितियाँ
जैसे कि वित्तीय समिति, सार्वजनिक उपक्रम समिति, और रक्षा समिति। - राज्यसभा समितियाँ: जैसे कि अंतरराष्ट्रीय मामलों की समिति, विधायिका समिति, और रिपोर्ट समिति।
ये समितियाँ सरकार के कार्यों की समीक्षा करती हैं और संसद में रिपोर्ट पेश करती हैं। इन समितियों के माध्यम से सरकार के कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
संसद और लोकतंत्र
भारतीय संसद लोकतंत्र का प्रतीक है। संसद के द्वारा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है, और यह सुनिश्चित करती है कि सरकार का कार्य लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से हो। संसद के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी कानून को पारित कर सकती है जो जनता के भले के लिए हो। इसके अलावा, यदि संसद किसी नीति से असहमत होती है, तो वह उसे बदलने के लिए कदम उठा सकती है।
संसद की चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता
भारतीय संसद को कई प्रकार क चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
असंसदीय व्यवहार
कभी-कभी संसद में गहमागहमी होती है और कई बार सांसदों द्वारा असंसदीय व्यवहार किया जाता है, जिससे कार्यवाही प्रभावित होती है।
सदस्यों की अनुपस्थिति
कई बार सांसद संसद सत्रों में अनुपस्थित रहते हैं, जिससे संसद की कार्यवाही प्रभावित होती है।
विधायिका में सुधार
संसद के कार्यों में सुधार की आवश्यकता है, ताकि यह और अधिक प्रभावी रूप से कार्य कर सके।
भारतीय संसद का इतिहास और विकास
भारतीय संसद का इतिहास ब्रिटिश शासन से जुड़ा हुआ है, क्योंकि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था। भारतीय संसद का निर्माण भारतीय संविधान द्वारा किया गया, जो 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा स्वीकृत हुआ और 15 अगस्त 1950 को लागू हुआ। भारतीय संसद के गठन की प्रक्रिया और उसका कार्य विधायिका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
ब्रिटिश शासन और संसद का गठन
ब्रिटिश राज में भारतीय संसद का स्वरूप सीमित था। हालांकि, भारतीय शासन अधिनियम 1919 और 1935 ने भारतीय विधायिका को कुछ अधिकार दिए, लेकिन पूर्ण स्वायत्तता की ओर बढ़ने में भारतीय संसद का गठन स्वतंत्रता संग्राम के बाद हुआ।
स्वतंत्रता के बाद
भारतीय संविधान में संसद के गठन को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए थे। संसद के दो सदनों की व्यवस्था, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं, ने लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाया।
भारतीय संसद के कार्यों का विस्तार
भारतीय संसद का कार्य अत्यधिक विविध और जटिल है। संसद की कार्य प्रणाली में कई स्तर होते हैं और इसके कार्यों में कई महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ होती हैं।
विधेयक प्रक्रिया
किसी भी विधेयक को कानून बनाने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। भारतीय संसद में विधेयक का गठन लोकसभा और राज्यसभा दोनों में किया जाता है। विधेयक की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों से गुजरती है
विधेयक का प्रस्तुतीकरण
सबसे पहले, विधेयक को संसद में पेश किया जाता है। इसे किसी सांसद द्वारा या सरकार की तरफ से प्रस्तुत किया जा सकता है।
विधेयक पर बहस
विधेयक के प्रस्तुत होने के बाद संसद में उस पर चर्चा होती है। संसद सदस्य विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हैं और अपना पक्ष रखते हैं।
मतदान
विधेयक पर चर्चा के बाद, मतदान किया जाता है। अगर बहुमत विधेयक के पक्ष में होता है, तो वह विधेयक अगले चरण में जाता है।
संसद में दोनों सदनों से पारित होना
विधेयक को दोनों सदनों में पारित होना आवश्यक होता है। अगर एक सदन में कोई संशोधन प्रस्तावित करता है, तो वह दूसरे सदन में भी उसे पारित करने के लिए जाता है।
राष्ट्रपति की स्वीकृति
जब विधेयक दोनों सदनों से पारित हो जाता है, तो वह राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर के बाद, वह विधेयक कानून बन जाता है।
संसदीय सत्रों की कार्यवाही
संसदीय सत्रों की कार्यवाही बहुत व्यवस्थित और विधिपूर्वक होती है। संसद का हर सत्र एक निर्धारित प्रारूप के अनुसार आयोजित होता है।
संसदीय प्रश्नकाल
जैसे पहले बताया गया था, यह वह समय होता है जब सदस्य सरकार से सवाल पूछते हैं और सरकार को अपनी कार्यवाही के बारे में उत्तर देना होता है। यह संसद की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
संसदीय बहस
संसद में विभिन्न मुद्दों पर बहस होती है, जैसे कि विधेयकों, राष्ट्रीय नीतियों, और अन्य महत्वपूर्ण मामलों पर। इन बहसों का उद्देश्य सरकार की कार्यप्रणाली की समीक्षा करना और सुधार की दिशा में कदम उठाना है।
संसदीय जांच समितियाँ
संसद में विभिन्न समितियाँ बनाई जाती हैं, जो सरकार के कार्यों की गहनता से जांच करती हैं। ये समितियाँ रिपोर्ट तैयार करती हैं और संसद में प्रस्तुत करती हैं।
वित्तीय कार्यवाही
भारतीय संसद का एक महत्वपूर्ण कार्य वित्तीय निर्णयों पर चर्चा और मंजूरी देना है। प्रत्येक साल सरकार अपने बजट को संसद में पेश करती है, और संसद उस पर चर्चा करती है और अनुमोदन करती है।
Conclusion
भारतीय संसद लोकतांत्रिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसका कार्य लोकतंत्र को सशक्त और प्रभावी बनाए रखना है। हालांकि, संसद की कार्यप्रणाली में कई सुधारों की आवश्यकता है, लेकिन सुधारों के माध्यम से इसे और अधिक पारदर्शी, जवाबदेह, और प्रभावी बनाया जा सकता है लोकतंत्र की मजबूती: संसद की कार्यप्रणाली और इसके सुधारों के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत किया जा सकता है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली पर जनता का विश्वास बढ़ेगा और संसदीय प्रक्रिया में सुधार होगा।
संसदीय सुधारों की निरंतरता: संसद में सुधारों को निरंतर लागू किया जाना चाहिए ताकि यह समय के साथ विकसित हो सके और लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन कर सके। नागरिकों की सक्रिय भागीदारी: संसद में सुधारों के साथ-साथ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है। इससे लोकतंत्र में सक्रियता बढ़ेगी और सरकार और संसद की कार्यप्रणाली पर पारदर्शिता आएगी।
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