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Article 370 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 15:27:27
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए अस्थायी उपबंध (Temporary provisions with respect to the State of Jammu and Kashmir) से संबंधित था। यह प्रावधान जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था, लेकिन 5 अगस्त 2019 को इसे राष्ट्रपति के आदेश और संसदीय संशोधन के माध्यम से काफी हद तक निरस्त कर दिया गया।
"(1) जम्मू और कश्मीर के लिए इस संविधान के कुछ प्रावधान लागू नहीं होंगे, सिवाय उन मामलों के जो जम्मू और कश्मीर के महाराजा द्वारा हस्ताक्षरित विलय पत्र (Instrument of Accession) में शामिल हैं।
(2) केंद्र सरकार, जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से, अन्य प्रावधान लागू कर सकती है।
(3) राष्ट्रपति, जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश पर, इस अनुच्छेद को निरस्त या संशोधित कर सकता है।"
272) और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के माध्यम से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया गया। अब केवल अनुच्छेद 370(1) आंशिक रूप से प्रभावी है, और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू और कश्मीर, लद्दाख) में विभाजित किया गया है।
उद्देश्य: अनुच्छेद 370 का मूल उद्देश्य जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करना था, क्योंकि यह एकमात्र रियासत थी जिसने 1947 में भारत के साथ विलय पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें केवल रक्षा, विदेशी मामले, और संचार केंद्र के अधीन थे। यह प्रावधान अस्थायी था, जो जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा (1951-1957) की सिफारिशों पर आधारित था। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय एकीकरण और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 370 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा था, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह द्वारा 1947 में हस्ताक्षरित विलय पत्र से प्रेरित था। विलय पत्र (1947): जम्मू और कश्मीर ने भारत में विलय किया, लेकिन विशेष शर्तों के साथ, जिसने इसे अन्य राज्यों से अलग स्वायत्तता दी। 1951-1957: जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा ने अपना संविधान बनाया, जो 1957 में लागू हुआ।
272) के तहत अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 ने राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया: जम्मू और कश्मीर (विधानसभा के साथ)। लद्दाख (बिना विधानसभा)। उच्चतम न्यायालय (2023): अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को संवैधानिक माना। प्रासंगिकता (2025): अनुच्छेद 370 अब मुख्य रूप से ऐतिहासिक महत्व रखता है, क्योंकि इसके अधिकांश प्रावधान निष्प्रभावी हैं।
अनुच्छेद 370 के प्रमुख तत्व (2019 से पहले): विशेष स्वायत्तता: जम्मू और कश्मीर को संविधान के कई प्रावधानों से छूट थी, जैसे: केंद्र की विधायी शक्ति केवल रक्षा, विदेशी मामले, और संचार तक सीमित। राज्य का अपना संविधान और झंडा। भारतीय नागरिकता और संपत्ति कानूनों में विशेष प्रावधान। उदाहरण: अनुच्छेद 35A (1954 में जोड़ा गया), जिसने गैर-निवासियों को संपत्ति खरीदने से रोका।
संविधान सभा की सहमति: केंद्र सरकार केवल जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से अन्य प्रावधान लागू कर सकती थी। 1957 में संविधान सभा भंग होने के बाद यह व्यवस्था जटिल हो गई।
राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति, संविधान सभा की सिफारिश पर, अनुच्छेद 370 को निरस्त या संशोधित कर सकता था। 2019 में, केंद्र ने राज्य विधानसभा को संविधान सभा के समकक्ष माना।
272): अनुच्छेद 370(1) को छोड़कर बाकी प्रावधान निष्प्रभावी। अनुच्छेद 35A समाप्त। पुनर्गठन अधिनियम, 2019: जम्मू और कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। उच्चतम न्यायालय (2023): निरस्तीकरण को संवैधानिक माना, क्योंकि संविधान सभा भंग हो चुकी थी।
महत्व: राष्ट्रीय एकीकरण: 2019 में पूर्ण विलय। संवैधानिक शासन: केंद्र की शक्ति। न्यायिक निगरानी: निरस्तीकरण की वैधता। ऐतिहासिक प्रासंगिकता: विशेष स्वायत्तता का अंत।
प्रमुख विशेषताएँ: स्वायत्तता: अस्थायी विशेष दर्जा। निरस्तीकरण: 2019 में निष्प्रभावी। पुनर्गठन: केंद्रशासित प्रदेश। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 35A: निरस्त। अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019।
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