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Article 374 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 15:49:06
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 374

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 374
अनुच्छेद 374 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह संघीय न्यायालय और प्रिवी काउंसिल के न्यायाधीशों और कार्यवाहियों से संबंधित प्रावधान (Provisions as to Judges of the Federal Court and proceedings pending in the Federal Court or before His Majesty in Council) से संबंधित है। यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद संघीय न्यायालय और प्रिवी काउंसिल से संबंधित मामलों और उनके न्यायाधीशों की स्थिति को संबोधित करता है।
(2) संघीय न्यायालय या प्रिवी काउंसिल में लंबित कार्यवाहियाँ उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित हो जाएँगी।
(3) प्रिवी काउंसिल के समक्ष लंबित अपीलें, यदि स्वीकार की जाती हैं, तो उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनी जाएँगी।
(4) उच्चतम न्यायालय को प्रिवी काउंसिल की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
उद्देश्य: अनुच्छेद 374 का उद्देश्य स्वतंत्रता के बाद न्यायिक निरंतरता सुनिश्चित करना है, विशेष रूप से संघीय न्यायालय (Federal Court) और प्रिवी काउंसिल से संबंधित मामलों और न्यायाधीशों के लिए। यह प्रावधान उच्चतम न्यायालय को पुराने मामलों और न्यायाधीशों की स्थिति को संभालने की शक्ति देता है। इसका लक्ष्य न्यायिक स्थिरता, कानूनी निरंतरता, और संवैधानिक ढांचे में एकीकरण सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 374 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। स्वतंत्रता से पहले, संघीय न्यायालय (1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत स्थापित) और प्रिवी काउंसिल (लंदन) भारत के सर्वोच्च न्यायिक निकाय थे। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, प्रिवी काउंसिल की भूमिका समाप्त हुई, और उच्चतम न्यायालय भारत का सर्वोच्च न्यायिक निकाय बना। उदाहरण: संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों का उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरण।
प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान अब ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि संघीय न्यायालय और प्रिवी काउंसिल के मामले अब समाप्त हो चुके हैं।
अनुच्छेद 374 के प्रमुख तत्व
संघीय न्यायालय के न्यायाधीश: संविधान लागू होने के समय संघीय न्यायालय के कार्यरत न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बन गए। उन्हें वही वेतन, अधिकार, और कर्तव्य प्राप्त हुए। उदाहरण: न्यायमूर्ति हरिलाल कुंडिया जैसे न्यायाधीश।
लंबित कार्यवाहियाँ: संघीय न्यायालय या प्रिवी काउंसिल में लंबित मामले उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित हो गए। उदाहरण: प्रिवी काउंसिल में अपीलों का स्थानांतरण।
प्रिवी काउंसिल की शक्तियाँ: उच्चतम न्यायालय को प्रिवी काउंसिल की शक्तियाँ प्राप्त हुईं, ताकि वह लंबित अपीलों को सुन सके।
न्यायिक समीक्षा: इस प्रावधान के तहत स्थानांतरित मामलों के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती थी।
महत्व: न्यायिक निरंतरता: पुराने मामलों का निपटारा। संवैधानिक एकीकरण: उच्चतम न्यायालय की सर्वोच्चता। प्रशासनिक सुगमता: न्यायिक स्थानांतरण। संस्थागत स्थिरता: स्वतंत्रता के बाद न्यायिक ढांचा।
प्रमुख विशेषताएँ: न्यायाधीश: संघीय न्यायालय से स्थानांतरण। मामले: लंबित कार्यवाहियों का हस्तांतरण। शक्तियाँ: प्रिवी काउंसिल से उच्चतम न्यायालय। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1947-50: प्रिवी काउंसिल की भूमिका समाप्त। 1950: संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों का उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरण। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: उच्चतम न्यायालय की स्थापना। अनुच्छेद 372: मौजूदा कानूनों की निरंतरता। भारत सरकार अधिनियम, 1935।
Conclusion
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